माता पिता के संस्कार स्वरूप ही पुत्र में आते हैं संस्कार - अखिलानन्द
डीडीयू नगर । स्थानीय श्री पंचमुखी विश्वकर्मा मंदिर प्रांगण में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के तृतीय दिवस व्यास पीठ से श्रीमद भागवत व श्री मानस मर्मज्ञ अखिलानन्द जी महाराज ने अपने वक्तव्य मे मंगला चरण का विस्तार रूप बताया। उन्होने कहा कि किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व मंगलाचरण करना चाहिए क्योंकि उक्त कार्य करने मात्र से उस कार्य मे किसी भी प्रकार अमंगलता का प्रवेश
चंदौली

अखिलानन्द जी महाराज
6:24 PM, Nov 6, 2025
स्वास्थ्य शिविर मे बीपी व शुगर की जांच सहित निःशुल्क वितरित हुयी औषधि
डीडीयू नगर । स्थानीय श्री पंचमुखी विश्वकर्मा मंदिर प्रांगण में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के तृतीय दिवस व्यास पीठ से श्रीमद भागवत व श्री मानस मर्मज्ञ अखिलानन्द जी महाराज ने अपने वक्तव्य मे मंगला चरण का विस्तार रूप बताया। उन्होने कहा कि किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व मंगलाचरण करना चाहिए क्योंकि उक्त कार्य करने मात्र से उस कार्य मे किसी भी प्रकार अमंगलता का प्रवेश नहीं होता है। श्रीमद् भागवत महापुराण के मंगलाचरण का विशेष महत्व है क्योंकि इस लोक में किसी देवता का स्पष्ट नाम नहीं है इसमें सत्यम परम धीमहि अर्थात सत्य स्वरूप परमात्मा का ध्यान किया गया है इसीलिए सभी अपने अपने इष्ट के साथ इस मंगलाचरण का प्रयोग करते हैं। उन्होने भागवत महापुराण की महिमा का बखान करते हुए वटवृक्ष स्वरूप बताया जो संस्कार संस्कृति सभ्यता सहित राष्ट्र निर्माण की ताकत रखती है। जीव के पांच शुद्ध पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि महाराज परीक्षित के पांच शुद्ध थे जिसमे मातृ शुद्धि, पितृ शुद्धि, वंश शुद्धि, अन्न शुद्धि, जल शुद्धि । जिनके माता पिता के संस्कार स्वरूप ही पुत्र में संस्कार आता है और उनके उपर ही भगवान की कृपा होती है। क्योंकि माता पिता ही पुत्र के प्रथम गुरू होते हैं। माता पिता द्वारा दिए गए प्रथम ज्ञान के फलस्वरूप ही पुत्र मे संस्कार आता है जिससे उक्त बालक अथवा जीव का जीवन मर्यादित होता है। इसलिए प्रत्येक माता पिता को यह ध्यान रखना चाहिए कि सबसे पहले हम अपने जीवन चरित्र को मर्यादित रखे ताकि वैसे ही पुत्र का जीवन भी मर्यादित हो सके। ईश्वर प्राप्ति के लिए अन्न जल का शुद्ध होना भी आवश्यक है क्योंकि कहा गया है कि जैसा खाए अन्न वैसा होए मन, मनुष्य जो धर्म सम्मत व शास्त्र सम्मत हो वही अन्न ग्रहण करना चाहिए । आज हम न जाने कैसे भोजन ग्रहण कर रहे हैं कि हमारी मनोवृत्ति विनष्ट हो रही है और इसके चलते हम भगवान से दूर होते जा रहे हैं। धर्म सम्राट महाराज परीक्षित के ये पांचो शुद्ध थे। जब परीक्षित को श्राप मिला कि सातवें दिन तक्षक के द्वारा डसां जाएगा उस समय के सभी संत महात्मा अपने अपने अनुसार महाराज का मार्ग प्रशस्त किए किंतु समुचित उत्तर न मिलने पर उन्होने विचार किया कि जिन्होने माता के गर्भमे नौ माह रक्षा की है उसी की शरण में जाना चाहिए। तब भगवान श्री कृष्ण की कृपा से उनके जीवन में सरू रूप में परम अवधूत शुकदेव जी का आगमन हुआ। कहने का आशय यह है कि ईश्वर को करुणा से ही जीवन सरू का आगमन होता है और सद् गुरू की कृपा से ईश्वरत्व की प्राप्ति होती है। इस दौरान प्रति दिवस प्रातः स्वास्थ्य शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है जिसमे रायपुर की चिकित्साधिकारी डा. प्रियंका जायसवाल व श्रुति जायसवाल द्वारा शुगर बीपी आदि की निःशुल्क जांच कर दवा वितरित की जा रही है।यजमान के रूप मे छोटे लाल जायसवाल,प्रिति जायसवाल एवं संजय अग्रवाल,मिलन अग्रवाल रहे।
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