रावण का इंटरव्यू रामजी प्रसाद " भैरव " ललित निबन्ध
" आप के भाई विभीषण ने भी आप को समझाने की बहुत कोशिश की , उसने राम से बैर न करने की सलाह दी । सीता को सकुशल वापस लौटने को कहा , परंतु आप ने एक न सुनी , उसे लात मार कर खदेड़ दिया । "

9:15 PM, Sep 30, 2025
रामजी प्रसाद "भैरव"
जनपद न्यूज़ टाइम्सरावण मर रहा था । अभी वह पूरी तरह से मरा नहीं था । उसे मरने में अभी समय था । वह जल्दी मर भी नहीं सकता । उसका मरना आसान नहीं था । उसे तिल तिल मरना था , घुट घुट मरना था । उसे अभी अपने पापों का हिसाब देना था । राम ने बाण मार कर घायल कर दिया था । उसकी नाभि का अमृत कुंड सूख गया । वह बेबस और लाचार मृत्यु की घड़ियां गिन रहा था । राम की सेना खुशियां मनाते हुए वापस लौट गयीं । रावण की बची खुची सेना , रावण के रणभूमि में गिरते ही भाग गई । झुटपुटे का समय था , झेंगुरों ने बोलना शुरू कर दिया था । रावण के कानों में लंकेश की जय का शोर गूँज रहा है । उसकी ऑंखें बन्द थी , पर होठों पर मुस्कान तैर रही थी । उसके कानों में पुनः लंकेश की जय सुनाई दी , पर वह बोला नहीं । उसी तरह मुस्कुराता रहा । ध्वनि फिर टकराई लंकेश की जय हो ।रावण ने आंखे खोली , सामने किसी अपरिचित को देखकर क्रोध से बोला -" कौन हो तुम ।"
" मैं हूँ , बंशीलाल पत्रकार , आप का इंटरव्यू लेने आया हूँ ।
रावण ने मुँह फेर कर आँखें बंद कर ली । बंशी लाल कुछ देर प्रतीक्षा किया फिर बोला -" महाराज , आप कुछ तो सन्देश दीजिये , आने वाले समय में लोग रावण को केवल लम्पट न समझ लें , इसलिए आप का बोलना जरूरी है ।"
रावण ने आँखें खोली -" क्या बोलूं , मनुष्य के लिए अहंकार ठीक नहीं है , अपना सर्वस्व नाश करा लेता है , जहाँ तक हो सके उसे बचना चाहिए । मैंने अहंकार को अपना बना लिया था , मेरी दशा देख रहे हो ।"
" महाराज ,मैं आप से क्या पूछूं , आप तो खुद ही महा पण्डित हैं । लेकिन एक बात समझ में नहीं आयी कि आप इतने बड़े ज्ञानी होकर सीता हरण जैसा जघन्य अपराध क्यों किया । "
" राम से प्रतिशोध लेने के लिए , वह असुरों का अहित कर रहा था ।"
" महाराज , आप सर्व शक्तिमान भी थे , जिसके चलने मात्र से धरती काँपती थी , किसी देवता में भी रावण से टक्कर लेने की क्षमता नहीं थी । फिर भी आप राम के डर से , चोरी से उनकी पत्नी को हर लाये , क्या यह उचित कदम था ।"
" राम के डर से नहीं , उसकी रूपवती स्त्री के आकर्षण में में मैं बंधा चला गया । उसे देखते ही उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो उठा , फिर मौका देखकर हरण कर लिया । सोचा , पत्नी वियोग में राम सिर पटक कर मर जायेगा और या रोते बिलखते अयोध्या चला जायेगा । इस प्रकार मेरे प्रिय राक्षसों को मारने का दण्ड भी पा जाएगा ।"
