रामलीला : धर्म, कला और संस्कृति का अनूठा संगम
रामलीला मनोरंजन से अधिक शिक्षा का माध्यम है। यह समाज को नैतिकता और आचरण का मार्ग दिखाती है। मर्यादा और धर्म के पालन का आदर्श श्रीराम से मिलता है, समर्पण और सेवा की प्रेरणा हनुमान से, पवित्रता और धैर्य का संदेश सीता से, और साहस व त्याग की शिक्षा लक्ष्मण से। रामलीला हर वर्ष समाज को याद दिलाती है कि जीवन में चाहे कैसी भी कठिनाइयाँ आएँ, धर्म और सत्य का पालन ही सर्वोपरि है।
उत्तर प्रदेश

रामलीला का मंचन
8:06 AM, Sep 26, 2025
फीचर डेस्क
जनपद न्यूज़ टाइम्स✍️ डॉ. रविकांत तिवारी
भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी और विस्तृत हैं कि उसके प्रत्येक आयाम में लोकजीवन की झलक मिलती है। इन्हीं सांस्कृतिक आयामों में रामलीला का विशेष स्थान है। रामलीला केवल भगवान श्रीराम की कथा का मंचन नहीं, बल्कि भारतीय समाज और संस्कृति का जीवंत उत्सव है। यह धर्म, नीति, लोककला, लोकगीत, परंपरा और मर्यादा का संगम है। जब गांव-गांव और नगर-नगर में रामलीला का मंचन होता है, तो यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं रहता, बल्कि एक ऐसी लोकपरंपरा बन जाता है जो समाज को जोड़ती है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे जीवन मूल्यों को सुरक्षित रखती है।
भगवान श्रीराम भारतीय जनमानस के आदर्श हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में सत्य, धर्म, त्याग, साहस और करुणा की शिक्षा देते हैं। रामलीला के माध्यम से उनके जीवन की कथा आमजन तक पहुँचती है। बालक हो या वृद्ध, स्त्री हो या पुरुष, सभी वर्ग के लोग रामलीला देखकर न केवल भाव-विभोर होते हैं, बल्कि अपने जीवन के लिए भी प्रेरणा ग्रहण करते हैं। सीता का धैर्य, हनुमान का समर्पण, लक्ष्मण का त्याग और राम का धर्मनिष्ठ आचरण दर्शकों के हृदय में नैतिकता की मशाल जलाते हैं। यही कारण है कि रामलीला केवल एक धार्मिक कथा का मंचन भर नहीं है, बल्कि एक ऐसी पाठशाला है, जहाँ जीवन के आदर्श और मर्यादाएँ सीखी जाती हैं।
रामलीला का एक बड़ा महत्व यह भी है कि यह समाज को जोड़ती है। इसमें न कोई जाति का भेद होता है, न वर्ग का अंतर। कलाकार साधारण ग्रामीण युवक होते हैं, लेकिन मंच पर वे राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान बन जाते हैं। दर्शक चाहे किसी भी पृष्ठभूमि के हों, कथा सबको समान रूप से प्रभावित करती है। विवाह का दृश्य पूरे गांव को उत्सव की तरह जोड़ देता है, सीता हरण की घटना सबको आक्रोशित करती है और रावण वध का क्षण सबके मन में बुराई पर अच्छाई की विजय का उल्लास भर देता है। इस प्रकार रामलीला एक सामाजिक समरसता का पर्व बन जाती है।
रामलीला में लोककला की विविध छवियाँ दिखाई देती हैं। मंच की सजावट, रंगीन पर्दे, परंपरागत वेशभूषा, पात्रों के मुखौटे, भजन, चौपाइयों का गायन और ढोल, नगाड़े जैसे वाद्य—ये सभी तत्व मिलकर एक अलौकिक वातावरण रचते हैं। आधुनिक तकनीक के युग में भी यह सहजता और लोकजीवन से जुड़ा सौंदर्य दर्शकों के मन को मोह लेता है। रामलीला का आकर्षण इसी में है कि यह कृत्रिम नहीं, बल्कि जीवन के साथ जुड़ा हुआ, सरल और सहज है।
रामलीला मनोरंजन से अधिक शिक्षा का माध्यम है। यह समाज को नैतिकता और आचरण का मार्ग दिखाती है। मर्यादा और धर्म के पालन का आदर्श श्रीराम से मिलता है, समर्पण और सेवा की प्रेरणा हनुमान से, पवित्रता और धैर्य का संदेश सीता से, और साहस व त्याग की शिक्षा लक्ष्मण से। रामलीला हर वर्ष समाज को याद दिलाती है कि जीवन में चाहे कैसी भी कठिनाइयाँ आएँ, धर्म और सत्य का पालन ही सर्वोपरि है। यही संदेश इसे कालजयी और अमर बना देता है।
आज के तकनीकी युग में जब मनोरंजन के अनगिनत साधन उपलब्ध हैं—टीवी, सिनेमा, इंटरनेट और मोबाइल—फिर भी रामलीला की प्रासंगिकता बनी हुई है। गांवों-कस्बों में तो यह परंपरा वैसे ही जीवित है, वहीं बड़े शहरों में भी रामलीला समितियाँ भव्य मंचन करती हैं। कहीं मंच सज्जा में आधुनिक ध्वनि और प्रकाश की तकनीक जुड़ गई है, तो कहीं डिजिटल पर्दे का सहारा लिया जाता है। किंतु कथा और उसका मूल संदेश वही है। यही रामलीला की शक्ति है कि बदलते समय में भी वह उतनी ही भावनात्मक और प्रेरणादायी बनी रहती है।
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रामलीला की महत्ता केवल भारत तक सीमित नहीं है। नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, मॉरीशस, फ़िजी और अन्य देशों में बसे भारतीय समुदाय भी हर वर्ष रामलीला का आयोजन करते हैं। विदेशों में रहकर भी भारतीय मूल के लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहने के लिए रामलीला का सहारा लेते हैं। यही कारण है कि यूनेस्को ने भी रामलीला को विश्व सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की है। यह प्रमाण है कि रामलीला भारतीय संस्कृति की उस धारा का प्रतिनिधित्व करती है, जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई देती है।
रामलीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, यह हमारी लोकसंस्कृति का जीवंत उत्सव है। इसमें धर्म है, कला है, संगीत है, लोकगीत हैं, लोकनृत्य हैं, रीति-रिवाज हैं और सबसे बढ़कर समाज को जोड़ने की शक्ति है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि अच्छाई अंततः बुराई पर विजय पाती है। रावण चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म की शक्ति के सामने उसका अंत निश्चित है। दीपावली से पूर्व होने वाला रावण दहन इसी शाश्वत सत्य का प्रतीक है।
रामलीला हमारी संस्कृति की आत्मा है। यह न केवल अतीत की स्मृति है, बल्कि वर्तमान की धड़कन और भविष्य की प्रेरणा भी है। इसमें हमारी सभ्यता, हमारी कला और हमारे जीवन मूल्य समाहित हैं। इसे बचाए रखना, संजोना और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना हमारा दायित्व है। रामलीला हमें जोड़ती है, प्रेरित करती है और सिखाती है कि जीवन में धर्म और मर्यादा से बढ़कर कुछ नहीं। यही कारण है कि रामलीला को हमारी लोकसंस्कृति का सबसे उज्ज्वल प्रतीक माना गया है।
डॉ रविकांत तिवारी
(लेखक राष्ट्रीय मुद्दों पर लेखन करने वाले वरिष्ठ चिंतक और स्तंभकार हैं)
