- मैं कोई विषपायी नहीं - रामजी प्रसाद " भैरव " ललित निबन्ध
देवताओं और असुरों में कोई कोई महत्वाकांक्षी होता था । वह टकराहट इसी बात की थी । आज सभी महत्वाकांक्षी होते जा रहे हैं । सब एक दूसरे के सिर पर पाँव रखकर आगे बढ़ना चाहते हैं । सब अमीर बनना चाहते हैं । कोई गरीब नहीं रहना चाहता । सब चाहते है बस एक वर्ग हो अमीर , पर क्या यह सम्भव है । जीवन की जाने कितनी प्रकार की विसंगतियां आदमी को रोज झकझोरती है । वह उठता , गिरता , पड़ता , लड़खड़ाता चला जा रहा है । इस चलने

रामजी प्रसाद "भैरव"
6:58 AM, Dec 8, 2025
डेस्क
जनपद न्यूज़ टाइम्सकभी कभी भगवान शिव के उस चित्र को देखकर मन में सवाल उठते हैं , जिसमें वह कालकूट पी रहे हैं । शिव की हर मूर्ति , हर चित्र मुझे आकर्षित करते हैं , लेकिन कालकूट पीते हुए , कुछ विशेष ही । वैसे साधक शिव , अड़भंगी शिव , अर्धनारीश्वर शिव , नटराज शिव , गौरा संग विराजते हुए शिव , परिवार की प्रथम परिकल्पना में शिव । शिव की व्याप्ति प्राचीन काल से संसार में है । कथा में आता है कि समुद्र मंथन से निकले विष को शंकर जी ने पी लिया और संसार की रक्षा की । समुद्र से तो चौदह रत्न निकले थे , उसे देवताओं ने बाँट लिया , कुछ असुरों ने ले लिया । आश्चर्य इस बात पर होता है कि जब कालकूट निकला तो दोनों ने लेने से मना क्यों कर दिया , इस प्रश्न उत्तर ढूँढने के लिए हम थोड़ा सामाजिक चिंतन करेंगे। । देखिए बात यह कि उस समय समाज में मूलतः दो वर्ग पहले से रहे हैं । एक सुविधा भोगी , जिनके पास संसार का सारा ऐश्वर्य भरा होता है । वे शक्ति सम्पन्न होते हैं । दूसरा वर्ग वो है जो शक्ति और ऐश्वर्य में पहले वालों से कम होता है । वह हमेशा प्रथम श्रेणी में पहुँचने के लिए संघर्ष करता है । देव और असुर इसके उदाहरण है । आज भी समाज केवल दो वर्ग है , एक अमीर दूसरा गरीब । अमीर को सारी सुविधाएं हैं सारा ऐश्वर्य है , तो गरीब अमीर बनने के लिए संघर्षरत है । अमीर बनने के लिए वह सब कुछ करता है , जो अमीर करता है । बस यहाँ थोड़ा सा फर्क है , उन्हें देव या असुर नहीं कहा जाता , मनुष्य कहा जाता है । मनुष्य का एक नामर्थ आदमी है । आदमी कहने में थोड़ी सहुलियत होती है । आदमी भी दो तरह के होते हैं । एक शरीफ़ दूसरा बदमाश । बदमाश को यहाँ गुंडा मवाली न समझे । आज के समय में थोड़ी विपरीत प्रवृत्तियों वालों में टकराहट बढ़ी है । वह हद दर्जे का स्वार्थी हो गया है । वह अपना हित देखता है । हित देखने में यह भूल जाता वह किसी का अहित भी कर रहा है । उसे लाभ से मतलब है । लाभ के बहुत प्रकार हैं । मुझे यह गिनाने की आवश्यकता नहीं । आदमी को सब पता है । अगर हम थोड़ा विचार करें तो पता चल जाएगा कि देवों और असुरों दोनों की संयुक्त प्रवृत्तियाँ आज के आदमी में हैं । अगर कोई देव है तो वह पहचान में नहीं आएगा , और वह असुर है तो भी पहचान में नहीं आएगा । इसे आप प्रवृत्तियों से पहचान पायेंगे । भगवान शिव ने दोनों के कल्याण के लिए गरल यानि कालकूट पी लिया । पी लिया तो पी लिया । उसका ढिढोरा नहीं पीटे , किसी से अपने जल रहे शरीर की विषाग्नि के बारे में चर्चा नहीं की । बस बैठ गए सहज अवस्था में । गरल के प्रभाव में उनका कण्ठ नीला हो गया । वे नीलकंठ हो गए । शिव का गरल को अपने गले में रोक लेना एक अनोखी बात थी । अनहोनी थी । यह संसार में किसी के बस की बात नहीं । आज का आदमी भी गरल पी कर जी रहा है । पी कर उल्टी कर रहा । विष वमन कर रहा है । समाज को गंदा कर रहा है । आदमी की भाषा में इसे प्रतिशोध कहते है । प्रतिशोध की आग भयानक आग है , एक बार लगती है तो जल्दी बुझती नहीं । भले पीढियां बर्बाद हो जाये । आदमी की एक दशा यह भी है कि शरीफ आदमी ही विष पी रहा है । लेकिन वह विषपायी नहीं बनता । नीलकंठ नहीं पुकारा जाता । वह आदमी ही रह जाता है। शरीफ आदमी को रोज विष पीना है । थोड़ा थोड़ा । इससे वह मर नहीं सकता और ये भी है कि वह जी भी नहीं सकता । ये विष उसे मारते नहीं , अपंग बना देते है । कमजोर बना देते हैं , वह ईर्ष्या , द्वेष , लालच , स्वार्थ , कुंठा , अवसाद , क्रोध , प्रतिशोध आदि के साथ जीने का अभ्यस्त हो चला है । आज सब विष पी रहे हैं । पी कर मतवाले हुए जा रहे हैं । लुंठित हुए जा रहे हैं ।
