सनातन चेतना का उत्सव है दीपावली

सनातन संस्कृति के विविध आयामों में उत्सव सबसे मधुर राग हैं, जो जीवन को अर्थ, लय और दिशा देते हैं। प्रत्येक पर्व किसी गहन दर्शन से जुड़ा होता है और यह बताता है कि धर्म जीवन से अलग नहीं, उसका सहज प्रवाह है। दीपावली इसका उत्कृष्ट उदाहरण है, जो अध्यात्म, संस्कृति, मानवता, नारी, प्रकृति और सत्य सभी के सुरों को एक साथ झंकृत करती है।

लखनऊ

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10:24 AM, Oct 20, 2025

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✍️  पवन शुक्ला (अधिवक्ता)


भारत के उत्सव केवल पर्व नहीं, संस्कृति के स्पंदन हैं। ये वही दीप हैं जो हर युग में आर्य चेतना के अंतःकरण को आलोकित करते आए हैं। जब भारत की आत्मा मुस्कुराती है, वह उत्सव के रूप में प्रकट होती है। ऋतुएँ बदलती हैं तो पर्व जन्म लेते हैं, फसल पकती है तो गीत गूँजते हैं, और जीवन के हर मोड़ पर कोई न कोई संस्कार दीप बनकर साथ चलता है। विपत्तियों के समय भी यही उत्सव हमारी सांस्कृतिक रक्षा-पंक्ति बने। इसी कारण सनातन संस्कृति में उत्सव केवल परंपरा नहीं, प्राणशक्ति हैं, जो समाज में धर्म, प्रेम और एकता की ज्योति जगाते हैं।“आनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः”  ऋग्वेद (संपूर्ण दिशाओं से मंगलकारी विचार हमारे भीतर प्रवाहित हों।)
सनातन संस्कृति के विविध आयामों में उत्सव सबसे मधुर राग हैं, जो जीवन को अर्थ, लय और दिशा देते हैं। प्रत्येक पर्व किसी गहन दर्शन से जुड़ा होता है और यह बताता है कि धर्म जीवन से अलग नहीं, उसका सहज प्रवाह है। दीपावली इसका उत्कृष्ट उदाहरण है, जो अध्यात्म, संस्कृति, मानवता, नारी, प्रकृति और सत्य सभी के सुरों को एक साथ झंकृत करती है।
 अध्यात्म का आलोक
सनातन संस्कृति का प्रथम प्रवाह अध्यात्म का है—वह आंतरिक दीप जो बाहरी जगमगाहट से कहीं अधिक शाश्वत है। जब हम दीप जलाते हैं, तो वस्तुतः अपने भीतर के अंधकार को मिटाते हैं। भगवान राम की अयोध्या वापसी इसी आत्मयात्रा का प्रतीक है, जहाँ अंधकार पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय होती है।“असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।” — बृहदारण्यक उपनिषद्यह श्लोक आज भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि आधुनिक मनुष्य जब बाह्य चकाचौंध में खो जाता है, तो यह दीपावली उसे भीतर लौटने का आमंत्रण देती है—जहाँ शांति का आलोक आत्मा में ही निवास करता है
संस्कृति का समन्वय और विविधता का प्रकाश
सनातन संस्कृति का दूसरा आयाम विविधता में एकता का है। दीपावली इसका मूर्त रूप है—उत्तर में राम की विजय, दक्षिण में कृष्ण का नरकासुर-वध, पूर्व में माँ काली की आराधना और पश्चिम में नए वर्ष का स्वागत। रूप अनेक हैं, पर भाव एक—अंधकार से प्रकाश की यात्रा।“एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति” — ऋग्वेद (सत्य एक है, ज्ञानी उसे अनेक रूपों में कहते हैं।)यही विविधता सनातन संस्कृति की पहचान है, जो “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को सजीव करती है
 आधुनिकता से संवाद करती परंपरा
आज यही चेतना आधुनिकता से संवाद करती है। सनातन परंपरा आधुनिकता को विरोध नहीं, पूरक दृष्टि से देखती है। Gen Z की “#SustainableDiwali” और “#LocalForVocal” जैसी पहलें मिट्टी के दीपक और स्वदेशी शिल्प को पुनर्जीवित कर रही हैं। ये केवल अभियान नहीं, बल्कि संस्कृति और प्रकृति से जुड़ने वाली नई आर्य चेतना की ध्वनि हैं।
 मानवता और सह-अस्तित्व की ज्योति
सनातन संस्कृति का अगला संदेश मानवता और सह-अस्तित्व का है। दीपावली का दीप केवल अपने आँगन को नहीं, दूसरों के जीवन को भी प्रकाशित करे—यही इसका सार है। अयोध्या का दीपोत्सव उस क्षण की स्मृति है जब सम्पूर्ण नगर धर्म और मर्यादा के पुनर्जागरण में सहभागी हुआ।“संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।” — ऋग्वेद (साथ चलो, साथ बोलो, तुम्हारे मन एक हो जाएँ।)यही तो सामूहिक आनंद और सामाजिक एकता का उत्सव है, जहाँ प्रकाश केवल दीपों में नहीं, हृदयों में जलता है।
 नारीशक्ति ~ सृजन की दीपधारा
सनातन संस्कृति का चौथा आयाम नारीशक्ति का है—जो सृजन, संतुलन और संवेदना का प्रतीक है। दीपावली में पूजित मां लक्ष्मी केवल धन की देवी नहीं, बल्कि विवेक, नेतृत्व और कल्याण की अधिष्ठात्री हैं। “छोटी दीपावली” की कथा, जब कृष्ण ने नरकासुर के बंधन से स्त्रियों को मुक्त कराया, स्मरण कराती है कि नारी की गरिमा सनातन चेतना का अनिवार्य तत्व है।“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।”  मनुस्मृति (जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं।)
 प्रकृति - सामंजस्य का पावन संदेश
सनातन संस्कृति का अगला प्रवाह प्रकृति-सामंजस्य का है। मिट्टी के दीपक, फूलों की मालाएँ, गौवंश और गोवर्धन की आराधना सिखाती हैं कि जीवन का सौंदर्य प्रकृति के संतुलन में है। अन्नकूट पर्व इसी कृषि-दर्शन का उत्सव है, जब भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा त्यागकर गोवर्धन और अन्नदाता का सम्मान किया।“माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।” — अथर्ववेद (भूमि मेरी माता है, मैं उसका पुत्र हूँ।)आज की हरित दीपावली (Eco-friendly Diwali) उसी प्राचीन भाव का आधुनिक रूप है, जहाँ विकास का अर्थ उपभोग नहीं, संरक्षण है।
 सत्य, मर्यादा और धर्मनिष्ठा की चेतना
दीपावली का अंतिम और सर्वाधिक गहन संदेश सत्य, मर्यादा और धर्मनिष्ठा की चेतना है। यह पर्व स्मरण कराता है कि विजय केवल बाह्य नहीं, भीतरी होती है — वह अहंकार, लोभ और असत्य पर आत्मसंयम, करुणा और सत्यनिष्ठा की विजय है। भगवान राम की विजय मर्यादा और करुणा की पुनर्स्थापना थी, जिसने यह सिद्ध किया कि शक्ति शस्त्र में नहीं, चरित्र में निहित है। माता लक्ष्मी की कथा बताती है कि समृद्धि संयोग से नहीं, बल्कि सतत पुरुषार्थ और आचरण की पवित्रता से जन्म लेती है। जब धन धर्म के पथ पर प्रवाहित होता है, तभी वह कल्याणकारी बनता है।“धर्मो रक्षति रक्षितः।” — मनुस्मृति (जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसी की रक्षा करता है।)
 दीप की अनुगूँज
इस प्रकार दीपावली सामाजिक दृष्टि से सांस्कृतिक एकात्मता और सामूहिक पुनर्जागरण का उत्सव है, जबकि आध्यात्मिक दृष्टि से यह अंधकार से प्रकाश, स्वयं से विश्व और क्षण से अनंत की यात्रा है। प्रत्येक दीप मानो कहता है—“दीपो भस्मं न भजति, परं प्रकाशयति सदा।” (दीप स्वयं जलता है, पर दूसरों को आलोक देता है।) यही सनातन चेतना की अनुगूँज है, जो सिखाती है कि जीवन का सार अपने नहीं, समष्टि के कल्याण में निहित है।


(लेखक उच्च न्यायालय लखनऊ में राज्य विधि अधिकारी हैं और समाज एवं संस्कृति के विषयों पर सक्रिय लेखन करते हैं)

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पवन शुक्ला (अधिवक्ता)

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