आस्था,शुद्धता,स्वच्छता और विश्वास का प्रतीक पर्व है छठ

चंदौली। लोक आस्था का महापर्व छठ 25 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ आरंभ होगा।जनपद में इसके लिए आस्थावानों के यहां तैयारी चल रही है। बाजार में पूजन सामग्री सूप, दौरी आदि की दुकानें सजी हैं।लोग खरीदारी कर रहे हैं।यह पर्व आस्था,शुद्धता,स्वच्छता और विश्वास का है।उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर प्रारंभ और समापन किया जाता है।महिलाएं नहाय खाय के साथ व्रत आरंभ करती हैं।जलाशयों में खड़े होकर पूजा अर्चना करती

चंदौली

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8:30 PM, Oct 23, 2025

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छठ पूजा को लेकर जनपद में तैयारियां जोरों पर

चंदौली। लोक आस्था का महापर्व छठ 25 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ आरंभ होगा।जनपद में इसके लिए आस्थावानों के यहां तैयारी चल रही है। बाजार में पूजन सामग्री सूप, दौरी आदि की दुकानें सजी हैं।लोग खरीदारी कर रहे हैं।यह पर्व आस्था,शुद्धता,स्वच्छता और विश्वास का है।उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर प्रारंभ और समापन किया जाता है।महिलाएं नहाय खाय के साथ व्रत आरंभ करती हैं।जलाशयों में खड़े होकर पूजा अर्चना करती हैं।घरों में छठ माता की महिमा पर आधारित देवी गीत गूंज रहे हैं।

बिहार से सटा होने के कारण जनपद में रोटी बेटी का रिश्ता काफी रहा है।छठ पर्व मूलत बिहार का पर्व है।यह पर्व पिछले एक दशक में पूर्वांचल के कोने कोने में फैला है।लोग इसको बड़े ही श्रद्धा से मनाते हैं।

लोक आस्था का चार दिवसीय पर्व जल-लहरियों में आस्था और विश्वास के रंगों में सजी, श्रंगार-विन्यास में दिव्य, व्रतधारी स्त्रियां, दूर पहाड़ों पर नीम-कुहासे को पछाड़ कर आसमान की पहली सीढ़ी चढ़ आये सूरज की ओर मुंह किये हुए छठ के पारंपरिक गीत गाती हुई अर्घ्य देती है।यह पर्व कठिन व्रत का ही नहीं बल्कि शुद्धता,स्वच्छता,विश्वास की परम्परा पर आधारित हैं।आस्था और आशीर्वाद का संगम है।घर से लेकर घाट तक शुद्धता और स्वच्छता का तालमेल रहता है।लोग यह सीखते हैं कि सूर्य भगवान के आचार-व्यवहार से पता चलता है कि अंधकार अस्थाई है। निश्चित ही अंधकार के बाद प्रकाश का अवतरण होगा । सूर्य डूबेगा ज़रूर लेकिन पुनःः दैदीप्यमान होगा नयी उम्मीद और नयी आशा की किरण लेकर।

छठ पर्व दीपावली के बाद मनाया जाने वाला प्रकृति पूजा, आस्था और पर्यावरण का पर्व है। यह पर्व नदियों व जलाश्य के तटों व किनारे पर बड़े हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा में किसी देवी-देवता की मूर्तियां या मंदिर की पूजा नहीं की जाती बल्कि धरती और जल की पूजा के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनके समक्ष समस्त मानव जाति के स्वास्थ्य की कामना वह उन्हें अन्न, जल, ऊष्मा देने के लिए कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

छठ पर्व के दौरान प्रयुक्त होने वाली केवल प्रकृति जनित खाद्य वस्तुओं को ही शामिल किया जाता है अथार्त छठ पर्व की आस्था के केंद्र में प्रकृति और सूर्य भगवान हैं जिनके प्रति छठ पर्व को मनाने वाले श्रद्धालुओं द्वारा आभार संप्रेषित किया जाता है।

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वास्तव में छठ पर्व स्वच्छता व सफाई का त्यौहार भी है। इस त्योहार के पीछे कहीं न कहीं हमारे पुरखों की जल निधियों को श्रद्धा व आस्था द्वारा सहेजने की मंशा भी उजागर होती है। पर्व से पहले नदियों, तटों, जलाशय पर्व से पहले नदियों, तटों, जलाशयों की साफ-सफाई की जाती है ताकि व्रत-धारी पानी में घंटों खड़े रहकर सूर्य की उपासना कर सकें।

छठ पर्व का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह भी है कि विटामिन डी के श्रोत भगवान सूर्य को अर्घ्य देने हेतु घंटों जलाशयों में खड़े रहकर शरीर में साल भर तक के लिए विटामिन की भी पूर्ति हो जाती है।

छठ पर्व के बहाने बरसात के बाद जल निधियों में बहकर आये कूड़े की भी सफाई तो हो जाती है किंतु पर्व समापन के बाद स्थिति जस की तस हो जाती है ।

छठ पर्व का उद्देश्य श्रद्धालुओं द्वारा प्रकृति व पर्यावरण को बचाने के लिए आस्था के साथ सूर्य भगवान की अर्चना व अभ्यर्थना भी है जिसके उपभोग के लिए कृतज्ञता ज्ञापित करना छठ पर्व को मनाने का सर्वोच्च व उज्जवल पक्ष है।

दीपावली के बाद छठ पर्व में छत्तीस घंटे स्वच्छता व पवित्रता और उसके बाद तीन सौ इकसठ दिन वही घाटों पर जस का तस गंदगी भरा माहौल। हर साल छठ पर्व पर देश की नदी, जलाशयों को स्वच्छ बनाने, पुराने जीर्ण-शीर्ण तालाबों को पुनर्जीवित, नयी जल नीधियों का निर्माण उनका संरक्षण व उनमें गंदगी साबुन, प्लास्टिक जाने से रोकने की कृत संकल्पता हो तो छठ पर्व की कीर्ति और यश किसी और ऊंची बुलंदियों को ही छू जायेगी। छठ पर्व हमारी आस्था, प्रकृति और सूर्य पूजा का पर्व है।

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